Ankhein

आँखें छुपाती हैं ज़्यादा बताती है कम
याद वो आये तो हो जाती है नम


इज़हार भी ये करती है तकरार भी
ढाल भी है ये तलवार भी


चमकती भी है ये किसी के आने से
मायूस भी हो जाती है उसके जाने से


धुंदलीसी यादों में  किसी को तलाशती है
कभी बेखयाली में बस ... यूँ ही बरस जाती है

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