Tumhare Baad

बीते दिनों की गठरी को सजाकर
दिलके कोने में छुपाकर रखी है मैंने
कभी तसल्ली के लिए टटोल लेता हूँ
तो मानो यादोंका सैलाब आखोंसे बह जाता है

कैसे उन अधूरे लम्होंकी अब दास्ताँ बन गयी
दबीसी सिस्कियोकी एक उदास धुन बन गयी
बेरहम रातोंको समझाना अब मेरे बस में नहीं
अपने ही गमोंका बोझ उठाना अब मुमकिन नहीं

दिन कुछ यूँ आँखे चुराते गुजरता है
मानो शामकी नजरों से, सुबह उतर जाती है
समझाना चाहूँ खुद को, कुछ पल ही की बात है
पर रात की क़ैद में, वो भी मिट जाती है

दर्द बेहद इस बात का है के तुम नही रही
पर मुश्किल इस बात से हल है
..... के जीने की अब कोई वजह ना रही



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