Badal Gaya Hoon Main


ज़िंदगी, अब तुझ से आँखें चुरा रहा हूँ मैं
दे सहारा मुझे, शायद हद से गुज़र रहा हूँ मैं

सब कहते पत्थर था, कितना बदल गया हूँ मैं
कैसे कहुँ, वक़्त की आँच से पिघल गया हूँ मैं

यूँ तो हक़ीक़तोंको भी फूँक कर पीता हूँ मैं
अब तो अफवाहोंपर भी यकीन कर लेता हूँ मै

ये अलग बात है के मेरा क़त्ल कर के मुझसे तू खफ़ा है
खामोश हूँ ... इश्क़ की रस्म को खूब निभा लेता हूँ मैं

Comments

Popular posts from this blog

Paradhin Aahe Jagati Putra Manavacha

संदीप खरेच्या कविता

Trip to Karde