Khafaa... Apne Aap Se

मैं बस अपने दिल की खामोशियोंसे बात करता हूँ
दोस्त भी आये तो नज़रन्दाज़ करता हूँ 


खुशबू भी आये कभी चमन से
मैं अपनी साँसे बंद करता हूँ


कोई पास भी आये बाहें फैलायें
मैं बस दूर से ही सलाम करता हूँ


कभी नींद भी आये पल्कोंमें मेरे
मैं करवट बदल उससे पर्दा करता हूँ


ज़िंदगी कभी सुकून भी ले आती है
मैं दिल पे ज़ख्म कर लेता हूँ 


हाँ मैं अपने आपसे भी खफा हूँ

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