Aye Muhobbat Tere Anjaam Pe Rona Aaya

I have rediscovered a lost song from Mughal-E-Azam written by Shakil Badayuni and sung by Begum Akhtar.



मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया

यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंज़िल--इश्क़ में हर गाम पे रोना आया
(गाम = step)

मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला--नौहागरी
इस क़दर गर्दिश--अय्याम पे रोना आया
(सिलसिला--नौहागरी  = process of lamentation/mourning)

क्या हसीं ख्वाब दिखाया मुहब्बत ने हमें
खुल गयी आँख तो ताबीर पे रोना आया
(ताबीर = interpretation of dreams)

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'
मुझ को अपने दिल--नाकाम पे रोना आया

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