Just Random poetry

 गधे पर बैठने तक की औकात नही है
पर सारे घुड़सवार बन बैठे है
बड़े ही शातिर ये लोग है
सारे ही चौकीदार बन बैठे है

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मुझसे उम्र भर साथ रहने की बात ना करो
मुझे पल भर मुस्कराने की सज़ा मालूम है

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 देखूँ तो जगमगाहट खूब है बाहर
पर क्यों अंदर से बूझे  हुए है लोग
रास्ता बनाना तो दूर रहा
क्यों अपने ही रास्ते पे रुके हुए है लोग 

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उस रात यूँ नजर आया के सितारें जमीन पे चल रहे थे
पास गया तो देखा जुगनू उसके पाँव चूम रहे थे 

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आज तक खड़े है हम
वजह पूछने का न कभी मौका मिला
लहजा तो वो बदलते गए
और अजनबी हमें कहते गए 

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दुनिया के शोर का यूँ हुआ असर मुझपे
मेरी ख़ामोशी भी गनगुनाने लगी है मुझपे 

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देखा है दुनिया को बहुत नज़दीक से
यूँ ही नहीं दूर बैठा हूँ सभी से

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 एक हसरत है के अपना घर तेरे घर के करीब होता
बात करना नामुमकिन सही पर देखना तो नसीब होता

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 कहाँ तक ये रास्ते जाते हैं , कहाँ पर था मोड़ अब याद नहीं
बस जो मिल गया वो पास रहा, किसे था चाहा अब याद नहीं  

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क्या से क्या हो गए हम
एक छोटा सा आदमी खाना लिए घर जा रहा था
बच्चोंकी याद में खुश, जब भीड़ ने उसे घेर लिया था
सब मिलके शेर बन गए, पर वो तो गीदड़ों की भीड़ थी
हाथ में उनके लाठियां थी, तो भैंस भी उन्ही की थी
भीड़ ये कहती गोमांस है
हमें तो खून की प्यास है
बात को कुछ यूँ घूमाना, नफरतों के रोग थे,
ना धर्म उनका ना जाती उनकी, बस भीड़ थी, कुछ लोग थे
अफसोस इस बात का नही कि धर्म का धंधा हो रहा है,
अफसोस तो इस बात का है कि पढ़ा लिखा भी अंधा हो रहा है...

 

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