Just Random Poetry - 2
जो तक़दीर में ना लिखा तू उसका मुझे ख्वाब भी न दे
गर तू खुद है परेशाँ ए ज़िंदगी, तो मुझे जवाब भी न दे
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कभी थी खामोशी उसकी बोलती
कभी उसके अल्फ़ाज़ खामोश कर गए
पर ज़िद में उसे अपनाने की
हम कई बार मर गए
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मुझसे इश्क़ करके मुझे
प्यार करने के बाद
बेइंतिहा याद आता है वो
मुझको भूल जाने के बाद
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कैद है हम जात में
कैद है हम धर्म में
कैद है हम गरीबी में
कैद है हम अमीरी में
कैद है हम पितृसत्ता में
कैद है हम संस्कारों मे
ये सब छोड़कर क्यों ना
कैद हो में इंसानियत में
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