Dil Dhoondta Hai!
Dil Dhoondta Hai
This is a fairly longish post, but with lots of trivia!
Here is Madan Mohan trying other tunes for this song!
https://youtu.be/vy3nkTiSZ6M
Some more trivia
करता हूँ जमा फिर जिगर-इ-लखत-लखत को
अरसा हुआ है दावत-इ-मिज़ह्गान किये हुए
लखत = Piece
मिज़ह्गान = eyelids
फिर वजा-इ-एहतियात से रुकने लगा है दम
बरसों हुए हैं चाक गिरेबान किये हुए
एहतियात = Care or caution
चाक - Torn
फिर गर्म-नाला हाय शरार-बार है नफास
मुद्दत हुई है सैर-इ-चरागाँ किये हुए
नाला = Lament or rivulet
शरार-बार = spark or Ember
नफास = Breath
फिर पुसिश-इ-जराहट-इ-दिल को चला है इश्क
सामान-इ-सद-हज़ार नमक-दान किये हुए
फिर भर रहा हूँ खामा-इ-मिज़ह्गान बा-खून-इ-दिल
साज़-इ-चम्-तराजी-इ-दामान किये हुए
बा-हम-दिगर हुए हैं दिल-ओ-दीदा फिर रकीब
नज्जारा-ओ-ख़याल का सामान किये हुए
दिल फिर रवाफ-इ-कू-इ-मलामत को जाए है
पिन्दार का सनम-कदह वीरान किये हुए
फिर शौक़ कर रहा है खरीदार की तलब,
अर्ज़-इ-मता-इ-अक्ल-ओ-दिल-ओ-जान किये हुए
दौड़े हैं फिर हर एक गुल-ओ-लाला पर ख़याल
सद-गुल-सीतां निगाह का सामान किये हुए
फिर चाहता हूँ नामा-इ-दिल-दार खोलना
जान नज़र-इ-दिल-फरेबी-इ-उनवान किये हुए
मांगे है फिर किस्सी को लब-इ-बाम पर हवस
ज़ुल्फ़-इ-सियाह रुख पे परेशान किये हुए
चाहे फिर किसी को मुकाबिल में आरजू
सुरमे से तेज़ दशना-इ-मिज़ह्गान किये हुए
इक नौ-बहार-इ-नाज़ को ताके है फिर निगाह
चेहरा फुरोग-इ-मई से गुलिस्तान किये हुए
फिर जी में है की दर पे किस्सी के पड़े रहे
सर ज़ेर बार-इ-मिन्नत-इ-दरबान किये हुए
जी ढूँढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहे तसव्वुर-इ-जानां किये हुए
ग़ालिब हमें न छेड़ की फिर जोश-इ-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-इ-तूफ़ान किये हुए
This is a fairly longish post, but with lots of trivia!
दिल
ढूँढता है
फिर वही फ़ुरसत
के रात दिन
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ
किये हुए
The heart seeks some days and nights of
leisure
Just sitting around with thoughts of the
beloved
तसव्वुर
= खयाल
जानाँ
= Beloved
In
Gulzar’s own words, “मिसरा ग़ालिब का है कैफियत हम सब की”.
The
poet TS Eliot had described plagiarism in poetry in the following words: “Immature
poets imitate; mature poets steal; bad poets deface what they take, and good
poets make it into something better, or at least something different”.
Gulzar
picked up Ghalib’s words, replaced the जी
with दिल and completely changed the the meaning of the lyrics! Though the
structure was not written as below, the meaning of Ghalib’s original words were
जी
ढूँढता है
फिर वही फ़ुरसत,
के रात दिन बैठे रहे
तसव्वुर-ए-जानाँ
किये हुए
The inner self seeks those moments of
leisure
That days and nights are busy with thoughts of
the beloved
That’s
amazing word play! Coming back to the song …. It’s about the way “मौसम“ is perceived
by a person. For the heart in love, the cold of the winter takes a backseat as
the tender warmth of the sun warms the body. But for the heart that’s desolate it
longs for the warmth of his beloved.
One unrelated piece of trivia - This song Dil Dhoondta Hai can be set on the tune of Tere Liye Hum Hai Jiye from Veer Zara!
There
are two versions of this song – one a happy version which the romantic couple
sings and the other a sober and matured solo version that plays in the
background. In the happy version the word दामन is used and the sad version goes
with आँचल.
The
third stanza is that of a lonely soul and hence does not appear in the “happy”
version.
The
treatment that Madan Mohan has given to these versions is amazing. The peppy
tune in the happy version is replaced by pauses in the sad version stressing
the loneliness of the protaoganist. The same words that are used to emote
happiness and positivity connote desolation when used with pauses.
Sample
this - जाड़ों की
नर्म धूप और
आँगन में लेट
कर comes straight forward
without any pause in the happy version while in the sad version it appears like
जाड़ों की
… नर्म धूप और…
आँगन में लेट
कर almost as if he is
remembering the warmth that he shared with the beloved.
In
the happy version, the song starts with Bhupendra, but then Lata takes over. It
is the beloved who sings both the stanza’s. The male is left just to complete
the rhyme! the movie starts with the male, solo & sad version. So, it is when
we hear the duet, we realize that the hero is just not just remembering the
beloved, he is singing her song! That brings out the characters state of
profound sorrow.
The
picturisation of the happy version also needs to be mentioned. When the middle-aged
guilt ridden hero visits the places where he had shared moment’s joy with his
beloved he sees them singing the song …. Their song.
This
is vintage Gulzar. It is the these colours of emotion that he portrays so well.
दिल ढूँढता
है फिर वही
फ़ुरसत के रात
दिन
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए
दिल ढूँढता है...
जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींचकर तेरे आँचल/दामन के साये को
औंधे पड़े रहें कभी करवट लिये हुए
दिल ढूँढता है...
या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए
दिल ढूँढता है...
बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूँजती हुई खामोशियाँ सुनें
आँखों में भीगे-भीगे लम्हें लिये हुए
दिल ढूँढता है...
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए
दिल ढूँढता है...
जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींचकर तेरे आँचल/दामन के साये को
औंधे पड़े रहें कभी करवट लिये हुए
दिल ढूँढता है...
या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए
दिल ढूँढता है...
बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूँजती हुई खामोशियाँ सुनें
आँखों में भीगे-भीगे लम्हें लिये हुए
दिल ढूँढता है...
Sad
version - https://www.youtube.com/watch?v=WKP5cqQvUBg
Happy
version - https://www.youtube.com/watch?v=IpLXxiNQHCQ
https://youtu.be/vy3nkTiSZ6M
Some more trivia
Here
is the ORIGINAL ghazal as written by the great Ghalib. The lines जी ढूँढ़ता है फिर वही फुर्सत .... appear 16th in the 17 Ashar Ghazal.
मुद्दत हुई है यार को मेहमान किये हुए
जोश-इ-क़दह से बज़्म चरागाँ किये हुए
जोश-इ-क़दह से बज़्म चरागाँ किये हुए
क़दह = Peg or goblet
बज़्म = Meeting or Mehfil
चरागाँ = Brighten up
अरसा हुआ है दावत-इ-मिज़ह्गान किये हुए
लखत = Piece
मिज़ह्गान = eyelids
फिर वजा-इ-एहतियात से रुकने लगा है दम
बरसों हुए हैं चाक गिरेबान किये हुए
फिर गर्म-नाला हाय शरार-बार है नफास
मुद्दत हुई है सैर-इ-चरागाँ किये हुए
नाला = Lament or rivulet
शरार-बार = spark or Ember
नफास = Breath
फिर पुसिश-इ-जराहट-इ-दिल को चला है इश्क
सामान-इ-सद-हज़ार नमक-दान किये हुए
फिर भर रहा हूँ खामा-इ-मिज़ह्गान बा-खून-इ-दिल
साज़-इ-चम्-तराजी-इ-दामान किये हुए
बा-हम-दिगर हुए हैं दिल-ओ-दीदा फिर रकीब
नज्जारा-ओ-ख़याल का सामान किये हुए
दिल फिर रवाफ-इ-कू-इ-मलामत को जाए है
पिन्दार का सनम-कदह वीरान किये हुए
फिर शौक़ कर रहा है खरीदार की तलब,
अर्ज़-इ-मता-इ-अक्ल-ओ-दिल-ओ-जान किये हुए
दौड़े हैं फिर हर एक गुल-ओ-लाला पर ख़याल
सद-गुल-सीतां निगाह का सामान किये हुए
फिर चाहता हूँ नामा-इ-दिल-दार खोलना
जान नज़र-इ-दिल-फरेबी-इ-उनवान किये हुए
मांगे है फिर किस्सी को लब-इ-बाम पर हवस
ज़ुल्फ़-इ-सियाह रुख पे परेशान किये हुए
चाहे फिर किसी को मुकाबिल में आरजू
सुरमे से तेज़ दशना-इ-मिज़ह्गान किये हुए
इक नौ-बहार-इ-नाज़ को ताके है फिर निगाह
चेहरा फुरोग-इ-मई से गुलिस्तान किये हुए
फिर जी में है की दर पे किस्सी के पड़े रहे
सर ज़ेर बार-इ-मिन्नत-इ-दरबान किये हुए
जी ढूँढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहे तसव्वुर-इ-जानां किये हुए
ग़ालिब हमें न छेड़ की फिर जोश-इ-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-इ-तूफ़ान किये हुए
Some
of these Ashar’s were recorded in Mohammed Rafi’s voice by Khayyam, set in Raag
Puriya Dhanashree
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