Two Lines

आज चाँद झाँककर देख रहा था खिडकीसे
लगता है मेरी तन्हाईके चर्चे आसमानों पर हैं




उम्मीद थी यह रास्ता तेरे घर को ले चले
उम्र गुजर गयी हम यही रास्ता तकते रहें
ये मुहबत की बन्दिशें भी बड़ी अजीब हैं
क़ैद कर के हमें फ़रार कहें
हम पर था इलज़ाम बेवफाई का
हम तो उनसे दिल लगाकर खुद से ही अजनबी रहें




किसका रास्ता तकती रहती है मेरी ऑंखें
एक अरसा हो गया किसी को आये हुए
बस एक खामोश खालीपन भरा पड़ा है
उसने तो मिलने का वादा भी नहीं किया था
कसूर तो अपना ही था
के उम्मीदों को जगाये रखा
वह दोस्ती को जताते रहें
और हम मुहोबत तलाशते रहें
अब तो ये अपनी ही मजबूरी हो गयी है
के अकेलेपन से बातें करता हूँ
और खामोशियोंसे लड़के
पुरानी तस्वीरें लिए सो जाता हूँ

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