Zihaal-e-miskin
I was trying to decipher of this beautiful song Zihaal-e-Miskin from the film Ghulami (music Laxmikant-Pyarelal, lyrics Gulzar) when I discovered the original one by Amir Khusro. The lyrics are available at Ektaara music Here is the song as adapted by Gulzar with his own antara’s – ज़िहाल – To notice or look upon मिस्कीं – Poor ( Metaphorically) or लाचार मकूं – Not or Do not ब रंजिश – With ill will or hatred(?) बहाल-ए-हिज्र – Fresh from seperation (Do not look upon my poor heart with enmity The wounds of separation are still fresh) ज़िहाल-ए-मिस्कीं मकूं बा रंजिश बेहाल-ए-हिज्र बेचारा दिल है सुनाई देती है जिसकी धडकन तुम्हारा दिल या हमारा दिल है वो आके पेहलू में ऐसे बैठे के शाम रंगीन हो गयी है ज़रा ज़रा सी खिली तबियत ज़रा सी गमघीन हो गयी है कभी कभी शाम ऐसे ढलती है जैसे घुंघट उतर रहा है तुम्हारे सीने से उठता धूआं हमारे दिल से गुज़र रहा है यह शर्म है या हया है क्या है नज़र उठाते ही झुक गयी है तुम्हारी पल्कों से गिर के शबनम हमारी अख...