Bheed mein ek insaan
यहाँ हर मोड़ पर चेहरे हैं अनजान, मैं भी बनना चाहता हूँ इस भीड़ में इंसान कोई न पहचाने, कोई न पुकारे, भीड़ के साए में खुद को मैं छुपाए अकेले चलने की हिम्मत नहीं, दुनिया की नजरों से डरता हूँ सही भीड़ की गूंज में खो जाना चाहूँ, बस, अपनी पहचान से बच जाना चाहूँ ना कोई पहचाने, न कोई पुकारे, भीड़ के साए में खुद को मैं ढालूं आसान मैं भी बनना चाहता हूँ इस भीड़ में इंसान