Hum Tere Shahar Mein

I am rediscovering some of the old gazals. This one sung by Ghulam Ali and outstanding lyrics by Qaiser Ul Jafri. The song can be heard here and can be seen here
हम तेरे शहर में आये हैं मुसाफ़िर की तरह
सिर्फ़ एक बार मुलाकात का मौका दे दे

मेरी मंज़िल है कहा मेरा ठिकाना है कहा
सुबहतक तुझसे बिछड कर मुझे जाना है कहा
सोचने के लिये एक रात का मौका दे दे

अपनी आखोंमें छुपा रखें हैं जुगनू मैने
अपनी पल्कोंपे सजा रखें हैं आसू मैने
मेरी आखोंको भी बरसात का मौका दे दे

आज की रात मेरा दर्द-ए-मुहब्बत सून ले
कपकपाते हुए होटोंकी शिकायत सून ले
आज इज़हार-ए-खयालात का मौका दे दे

भूलना था तो ये इक्रार किया ही क्यू था
बेवफ़ा तूने मुझे, प्यार किया ही क्यू था
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे

हम तेरे शहर में आये हैं मुसाफ़िर की तरह
सिर्फ़ एक बार मुलाकात का मौका दे दे

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